उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh )के विधानसभा चुनाव का 2024 के लोकसभा चुनाव से कनेक्शन को समझना जरूरी है क्योंकि राजनीति में एक कहावत भी है कि संसद का राह यूपी से हो ही कर गुजरती है। इसका मतलब यह है कि 80 लोकसभा सीट रखने वाला उत्तर प्रदेश देश की राजनीति के लिए बेहद अहम है। इस राज्य में जिस पार्टी का प्रभाव होता है संसद से उसकी दूरी कम जाती है। हालांकि समाजवादी पार्टी, बसपा जैसे क्षेत्रीय पार्टियों के बढ़ते प्रभाव तथा केंद्र में गठबंधन की सरकार बनते रहने से इस कहावत का अर्थ कम हो गया है। लेकिन देश के वर्तमान राजनीति में तो यह कहावत बिल्कुल सही लगती है। अभी केंद्र और राज्य दोनों जगह भाजपा की सरकार है। केंद्र में भले ही गठबंधन की सरकार हो लेकिन अकेले भाजपा भी बहुमत में हैं।
यूपी चुनाव में भाजपा(BJP) के नजरिए से देखे तो चुनाव परिणाम की तीन स्थितियां बन सकती है। पहली तो भाजपा की पूर्ण बहुमत के साथ जीत की, दूसरी हार की और तीसरी बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में गठबंधन की सरकार या विधायकों की खरीद फरोख्त की सरकार बनने की। आइए, अब एक-एक कर तीनों सम्भावित परिणामों की चर्चा करते हैं।
अगर भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ जीतती है
आमतौर पर यह समझा जा रहा है कि अगर भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ चुनाव जीतती है तो आगमी लोकसभा चुनाव में भाजपा की राह आसान हो जाएगी। लेकिन ऐसा समझना जल्दबाजी होगी। भाजपा के पूर्ण बहुमत के साथ चुनाव जीतने पर पार्टी के अंदर गुटबाजी को बढ़ावा मिलने लगेगा। यह जीत केवल मोदी नेतृत्व की जीत नहीं मानी जायेगी। जैसे कि अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव में होता है। भाजपा कही भी जीतती है उसे मोदी नेतृत्व की जीत ही मानी जाती है। लेकिन यूपी में इसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व से भी जोड़कर देखा जाएगा। पार्टी के जीत का बड़ा हिस्सा योगी के गुट को भी मिलेगा।
रामजन्म भूमि निर्माण का श्रेय भले ही मोदी जी के पाले में जाता हो लेकिन यह बात तो आज हर हिंदुत्व के जुबान पर है कि अगर राज्य में योगी आदित्यनाथ जैसा मुख्यमंत्री नहीं होता उसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को इतनी तेजी से अयोध्या में लागू नहीं किया जा सकता था। नरेंद्र मोदी ने तो सिर्फ मंदिर निर्माण में हिस्सेदारी रही योगी जी(Yogi Aditya Nath ) ने तो अयोध्या के सौंदर्य का कायाकल्प कर दिया है। अयोध्या के सरयू घाट पर श्रीराम की गगनचुंबी प्रतिमा बन रही है। दीपावली में अयोध्या का सौंदर्य और धार्मिक आयोजनों की कोई तुलना ही नहीं कर सकता। हर साल यहां का दीप प्रज्वलन महोत्सव अपना ही बना विश्व रिकॉर्ड तोड़ रहा है। ऐसे में खाटी अयोध्या में योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता नरेंद्र मोदी के समानांतर स्थापित हो चुकी है। इसलिए भाजपा की राजनीति में हिंदुत्व का मतलब अब केवल मोदी(Narendra Modi ) ही नहीं बल्कि योगी भी होता है।
इसलिए यूपी चुनाव में भाजपा के जीत से योगी गुट की ताकत भी पार्टी के अंदर बढ़ेगी। इसका प्रभाव 2024 के आगमी लोकसभा चुनाव में पार्टी के टिकट बंटवारे पर भी पड़ेगा।
आरएसएस का महत्व भी बढ़ेगा
यूपी(UP) चुनाव में आरएसएस की खास भूमिका सुनने को मिल रही है। उत्तर प्रदेश के लिए यह कोई नई बात नहीं है। यूं तो सभी राज्यों के चुनाव में आरएसएस की भूमिका होती है लेकिन यूपी में इसकी भूमिका पार्टी के संकट मोचन की होती है। दूसरे राज्यों की तरह पार्टी के छोटे भाई की तरह न् होकर बड़े भाई की होती है क्योंकि यहां के ओबीसी में आरएसएस की अच्छी पकड़ मानी जाती है। मंदिर आंदोलन हो या कोई अन्य हिंदुत्व आंदोलन यूपी के ओबीसी समाज का उससे अधिक जुड़ाव होता है। ओबीसी वर्ग पर प्रभाव होने के कारण ही भाजपा 2017 में विधानसभा चुनाव जीती थी। इस बार भी स्वामी प्रसाद मौर्य, नंद कुमार जैसे ओबीसी नेताओं के बगावत के बाद तो भाजपा के लिए आरएसएस का महत्व बढ़ जाता है। इसलिए भाजपा की जीत का मतलब पार्टी के अंदर आरएसएस(RSS) के हस्तक्षेप का बढ़ना भी हो सकता है।
योगी और आरएसएस के बढ़ते प्रभाव से पार्टी के अंदर मोदी के नेतृत्व को चुनौती मिल सकती है।
भाजपा की बड़ी जीत का मतलब मायावती की बड़ी हार
अगर भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ जीतती है तो मायावती(Mayawati) को विशेष हानि हो सकती है। भाजपा के जीतने का मतलब ब्राह्मण वोटों का भाजपा की ओर झुकाव भी हो सकता है। इससे बसपा का ब्राह्मण समाज से कनेक्शन खत्म हो सकता है। भाजपा की बड़ी जीत का एक अर्थ यह भी हो सकता है कि भीम सेना दलित वोटों में बड़ी सेंधमारी करने में सफल हो। जब भीम सेना के पाले में दलित वोटों का कुछ हिस्सा भी जाता है तो बसपा कई सीटों पर विरोधी पार्टी से मुकाबला करने में पीछे छूट जाएगी। इसलिए भाजपा की बड़ी जीत में मायावती की बड़ी हार छुपी हो सकती है।
अगर भाजपा की हार होती है
यूपी चुनाव(UP election ) में अगर भाजपा की हार होती है तो यह योगी आदित्यनाथ के करियर के लिए गम्भीर चुनौती बन सकता है। यह कोई जरूरी नहीं कि इस चुनाव के आगे जब कभी भी विधानसभा चुनाव हो औऱ उसमें भाजपा की जीत हो तो योगी आदित्यनाथ को दुबारा मुख्यमंत्री बनाने पर पार्टी और आरएसएस की सहमति हो ही जाए।
नरेंद्र मोदी के लिए पार्टी के अंदर की चुनौती निश्चित रूप से कम जाएगी। टीम मोदी हर परिस्थितियों को भुनाने में सक्षम है। वो जनता तक यह मैसेज फैलाने में सफल हो सकती है कि यूपी की हार योगी नेतृत्व की हार है न कि मोदी नेतृत्व की। लेकिन विपक्ष इस हार को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। सपा तथा कांग्रेस इस हार को नरेंद्र मोदी से जोड़ने की भरपूर कोशिश करेंगे।
जिन राज्यों में भाजपा गठबंधन की सरकार है वहां गठबंधन के दूसरे पार्टियों का भाजपा पर दबाव बढ़ सकता है।
अगर भाजपा के हार के बाद विधायकों की खरीद फरोख्त से सरकार बने
एक ऐसी भी स्थिति बन सकती है कि भाजपा को पूर्ण बहुमत न मिले। लेकिन भाजपा विपक्षी पार्टियों के विधायकों में तोड़फोड़ मचा कर सरकार बना ले। जैसे 2018 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में हुआ था जब भाजपा 109 सीट लाकर सत्ता से दूर हो गयी थी। फिर कांग्रेस के विधायको को तोड़ कर कांग्रेस की सरकार गिरा दी गयी और भाजपा की सरकार बन गयी। यह पार्टी के मोदी गुट के लिए सबसे बेहतर स्थिति हो सकती है। इससे योगी के बढ़ते नेतृत्व कौशल से मोदी गुट को छुटकारा मिल जाएगा औऱ विधायकों के तोड़ फोड़ कर सरकार बनाने से अमित शाह के प्रभाव को पहले की अपेक्षा औऱ बल ही मिलेगा।
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