कहा तस्वीर ने तस्वीर गर से
नुमाइश है मेरी तेरे हुनर से
अल्लामा इक़बाल
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मैं तेरी टाकूँ तस्वीर टांकों और फिर
आसमां से चांद को चलता करूँ
फ़ैज़ मुहम्मद शेख़
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तेरी तस्वीर से करूँ बातें
हाय मुम्किन नहीं मुलाक़ातें
नामालूम
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मैं कहाँ देखने से थकता हूँ
तेरी तस्वीर थक गई होगी
जून एलिया
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अपने जैसी कोई तस्वीर बनानी थी मुझे
मेरे अंदर से सभी रंग तुम्हारे निकले
नामालूम
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मुझे तस्वीर अपनी दूसरी दो
पुरानी आंसूओं से धुल गई है
शायर मसऊद
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तस्वीर पर शायरी
मेरी तस्वीर बनाने की जो धुन है तुमको
क्या उदासी के खद-ओ-ख़ाल बना पाओगे
परवीन शाकिर
तस्वीर शाहकार वो लाखों में बिक गई
जिसमें बग़ैर रोटी के बच्चा उदास है
नामालूम
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सिर्फ़ तस्वीर रह गई बाक़ी
जिसमें हम एक साथ बैठे हैं
शायर विक़ास विक्की
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धुएँ की लहर पे तस्वीरें रक़्स करती रहीं
वो सिगरेटों के तसलसुल में याद आता रहा
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तस्वीर पर शायरी
इतने ख़ुश-बख़्त हक़ीक़ीत में कहाँ हैं हम तो
जितने तस्वीर में ख़ुश-बाश नज़र आते हैं
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सीने से लगाओ तो लग जाती है सीने से
तुमसे कहीं अच्छी तस्वीर तुम्हारी है
शायर नामालूम
तेरी तस्वीर से मानूस हैं आँखें मेरी
मैं किसी और को देखूं भी तो कैसे देखूं
फौज़िया क़ुरैशी
अपनी तस्वीर को रखकर तेरी तस्वीर के साथ
मैंने इक उम्र गुज़ारी बड़ी तदबीर के साथ
महर जमशेद इक़बाल
तेरी तस्वीर देखता हूँ तो
याद आती हैं उस की तस्वीरें
कैसे ना मुम्किना से इम्काँ हैं
कितनी उलझी हुई हैं तक़दीरें
इशक़ जादू नहीं हक़ीक़ीत है
हमसे टूटी नहीं ये ज़ंजीरीं
ज़ीशान साजिद