कब जागोगे!
कब जागोगे! कवि: मिन्हाज रिज़वी रात मैं न्यूज़ देखते देखते कब सो गया मुझे पता ही नहीं चलायह रात मुझ पर बहुत भारी गुज़रीयह मेरा अंतर्द्वंद था कल्पना थी यथार्थ था या मात्र मेरा सपनाबहर हाल जो भी था भयावह थास्शुरुआत महाभारत थी कुरुक्छेत्र का मैदान था दोनों ओर भाई थे लड़ाई का कारण सत्ता …