अलीना इतरत की ग़ज़ल
शाम के वक़्त चिराग़ों सी जलाई हुई मैंघुप अन्धेरों की मुन्डेरों पे सजाई हुई मैं देखने वालों की नज़रों को लगूँ सादा वरक़तेरी तहरीर में हूँ ऐसे छुपाई हुई मैं ख़ाक कर के मुझे सहरा में उड़ाने वालेदेख रक़्साँ हूँ सरे दश्त उड़ाई हुई मैं लोग अफ़साना समझ कर मुझे सुनते ही रहेदर हक़ीक़त हूँ …