सूरज की किरण देख के बेज़ार हुए हो
शायद कि अभी ख़ाब से बेदार हुए हो
शहज़ाद अहमद
तुम पे सूरज की किरण आए तो शक करता हूँ
चांद दहलीज़ पे रुक जाये तो शक करता हूँ
अहमद कमाल परवाज़ी
बने हैं कितने चेहरे चांद सूरज
ग़ज़ल के इसतिआराती उफ़ुक़ पर
महताब आलिम
डूब जाता है दमकता हुआ सूरज लेकिन
मेंहदियाँ शाम के हाथों में रचा देता है
शहज़ाद अहमद
मुम्किन है कि सदीयों भी नज़र आए ना सूरज
इस बार अंधेरा मरे अंदर से उठा है
आनिस
सूरज के उजाले में चिराग़ां नहीं मुम्किन
सूरज को बुझा दो कि ज़मीं जश्न मनाए
हिमायत अली शायर
सूरज पर शायरी
झाँकता भी नहीं सूरज मेरे घर के अंदर
बंद भी कोई दरीचा नहीं रहने देता
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
उरूज पर है अज़ीज़ो फ़साद का सूरज
जभी तो सूखती जाती हैं प्यार की झीलें
नामी नादिरी
सारा दिन तपते सूरज की गर्मी में जलते रहे
ठंडी ठंडी हवा फिर चली सो रहो सो रहो
नासिर काज़मी
ये सूरज कब निकलता है उन्हें से पूछना होगा
सह्र होने से पहले ही जो बिस्तर छोड़ देते हैं
भारत भूषण पंत
सूरज से इस का नाम-ओ-नसब पूछता था मैं
उतरा नहीं है रात का नशा अभी तलक
भारत भूषण पंत
शब ढल गई और शहर में सूरज निकल आया
मैं अपने चराग़ों को बुझाता नहीं फिर भी
शहज़ाद अहमद
सूरज पर शायरी
बेहुनर हाथ चमकने लगा सूरज की तरह
आज हम किस से मिले आज किसे छू आए
शहज़ाद अहमद
चढ़ते सूरज की मुदारात से पहले एजाज़
सोच लू कितने चिराग़ उसने बुझाए होंगे
एजाज़ वारसी
ये हादिसा है कि नाराज़ हो गया सूरज
मैं रो रहा था लिपट कर ख़ुद अपने साये से
ग़ुलाम मुहम्मद क़ासिर
आग बरसाए ख़ुशी से कोई सूरज से कहो
मैं कोई मोम नहीं हूँ कि पिघल जाऊँगा
राशिद हामिदी
सूरज पे अशआर
वो कौन है उसे सूरज कहूं कि रंग कहूं
करूँगा ज़िक्र तो ख़ुशबू ज़बां से आएगी
शहज़ाद अहमद
रख देता है ला ला के मुक़ाबिल नए सूरज
वो मेरे चराग़ों से कहाँ बोल रहा है
वसीम बरेलवी
सूरज को चोंच में लिए मुर्ग़ा खड़ा रहा
खिड़की के पर्दे खींच दीए रात हो गई
निदा फ़ाज़ली
हो गई शाम ढल गया सूरज
दिन को शब में बदल गया सूरज
अतहर नादिर
बह वक़्त-ए-शाम समुंद्र में गिर गया सूरज
तमाम दिन की थकन से निढाल ऐसा था
अज़हर नय्यर