मुझे ये फ़िक्र सबकी प्यास अपनी प्यास है साक़ी
तुझे ये ज़िद कि ख़ाली हैमेरा पैमाना बरसों से
मजरूह सुलतानपुरी
ऐसी प्यास और ऐसा सब्र
दरिया पानी पानी है
विकास शर्मा राज़
नहीं बुझती है प्यास आँसू सें लेकिन
करें क्या अब तो याँ पानी यही है
सिराज औरंगाबादी
जिसे भी प्यास बुझानी हो मेरे पास रहे
कभी भी अपने लबों से छलकने लगता हूँ
फ़र्हत एहसास
सुलगती प्यास ने कर ली है मोरचा बंदी
इसी ख़ता पे समुंद्र ख़िलाफ़ रहता है
ख़ुरशीद अकबर
जाता है मिरा जान निपट प्यास लगी है
मँगता हूँ ज़रा शर्बत-ए-दीदार किसी का
सिराज औरंगाबादी
प्यास ऐसी थी कि मैं सारा समुंद्र पी गया
पर मेरे होंटों के ये दोनों किनारे जल गए
तरी पुरारी
प्यास पर शायरी
प्यास के शहर में दरिया भी सराबों का मिला
मंज़िल-ए-शौक़ तरसती रही पानी के लिए
मुहम्मद सालिम
क्या दिल की प्यास थी कि बुझाई ना जा सकी
बादल निचोड़ के ,ना समुंद्र तराश के
कौसर सेवानी
प्यास कहती है चलो रेत निचोड़ी जाये
अपने हिस्से में समुंद्र नहीं आने वाला
मेराज फ़ैज़ आबादी
अब तो सराब ही से बुझाने लगे हैं प्यास
लेने लगे हैं काम यक़ीं का गुमाँ से हम
राजेश रेड्डी
पलट के आ गई खे़मे की सिम्त प्यास मेरी
फटे हुए थे सभी बादलों के मश्कीज़े
मुहसिन नक़वी
कमाल तिश्नगी ही से बुझा लेते हैं प्यास अपनी
इसी तपते हुए सहरा को हम दरिया समझते हैं
जिगर मुरादाबादी
मर गए प्यास के मारे तो उठा अबर-ए-क्रम
बुझ गई बज़म तो अब शम्मा जलाता क्या है
अहमद फ़राज़
प्यास पर शायरी
प्यास जहां की एक ब्याबां, तेरी सख़ावत शबनम है
पी के उठा जो बज़म से तेरी और भी तिश्ना-काम उठा
अली सरदार जाफ़री
ओसों गई है प्यास कहीं दीदा-ए-नमीं
बुझता है आँसूओं से कहाँ दिल फुंका हुआ
मिर्ज़ा अज़फ़री
प्यास की सलतनत नहीं मिटती
लाख दजले बना फुरात बना
ग़ुलाम मुहम्मद क़ासिर
बुझी रूह की प्यास लेकिन सख़ी
मरे साथ मेरा बदन भी तो है
सर्वत हुसैन
ओस से प्यास कहाँ बुझती है
मूसलाधार बरस मेरी जान
राजेंद्र मनचन्दा बानी
प्यास को प्यार करना था केवल
एक अक्षर बदल ना पाए हम
नवीन सी चतुर्वेदी