ये समुंद्र ही इजाज़त नहीं देता वर्ना
मैंने पानी पे तेरे नक़्श बना देने थे
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आँख में पानी रखूँ , होंटों पे चिंगारी रखूँ
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखूँ
राहत इंदौरी
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मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं
हंस तालाब पे आते हैं चले जाते हैं
अब्बास ताबिश
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एक निशानी ये उसके के गाँव की
हर नलके का पानी मीठा होता है
ज़िया मज़कूर
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टूट पड़ती थीं घटाऐं जिनकी आँखें देखकर
वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए
सज्जाद बाक़िर रिज़वी
उदासी, शाम-ए-तन्हाई, कसक, यादों की बेचैनी
मुझे सब सौंप कर सूरज उतर जाता है पानी में
नामालूम
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एक आँसू ने डुबोया मुझको उनकी बज़म में
बूँद भर पानी से सारी आबरू पानी हुई
शेख़ इबराहीम ज़ौक़
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मैंने अपनी ख़ुशक आँखों से लहू छलका दिया
इक समुंद्र कह रहा था मुझको पानी चाहीए
राहत इंदौरी
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जितना पानी तेरे पूरे गावं में है
उतनी प्यास तो सिर्फ हमारे पांव में है
नदीम भाभा
पानी पर शायरी
रस उन आँखों का है कहने को ज़रा सा पानी
सैंकड़ों डूब गए फिर भी है उतना पानी
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आँख से बह नहीं सकता है भरम का पानी
फूट भी जाएगा छाला तो ना देगा पानी
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चाह में पांव कहाँ आस का मीठा पानी
प्यास भड़की हुई है और नहीं मिलता पानी
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दिल से लूका जो उठा आँख से टपका पानी
आग से आज निकलते हुए देखा पानी
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किस ने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी
झूम कर आई घटा टूट के बरसा पानी
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फैलती धूप का है रूप लड़कपन का उठान
दोपहर ढलते ही उतरेगा ये चढ़ता पानी
टिकटिकी बाँधे वो तकते हैं में इस घात में हूँ
कहीं खाने लगे चक्कर ना ये ठहरा पानी
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कोई मतवाली घटा थी कि जवानी की उमंग
जी बहा ले गया बरसात का पहला पानी
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हाथ जल जाएगा छाला ना कलेजे का छोओ
आग मुट्ठी में दबी है ना समझना पानी
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रस ही रस जिनमें है फिर सील ज़रा सी भी नहीं
मांगता है कहीं इन आँखों का मारा पानी
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ना सत्ता उस को जो चुप रह के भरे ठंडी सांस
ये हुआ करती है पत्थर का कलेजा पानी
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ये पसीना वही आँसू हैं जो पी जाते थे हम
आरज़ूध लू वो खुला भेद वो टूटा पानी
अर्ज़ो लखनवी