हमको मिटा सके ये ज़माना में दम नहीं
हमसे ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं
जिगर आबाद य
हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उठीं
वो फूल खुल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं
साहिर लुधियानवी
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तेरे सामने आसमां और भी हैं
अल्लामा इक़बाल
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
जो तूफ़ानों में पलते जा रहे हैं
वही दुनिया बदलते जा रहे हैं
जिगर आबाद य
अब हवाएं ही करेंगी रोशनी का फ़ैसला
जिस दीए में जान होगी वो दिया रह जाएगा
मह्शर बद एवनी
हम परवरिश लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे
जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कामयाबी पर शायरी
वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ए आसमां
हम अभी से क्यों बताएं क्या हमारे दिल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल
हम वो नहीं कि जिनको ज़माना बना गया
जिगर आबाद य
लोग कहते हैं बदलता है ज़माना सबको
मर्द वो हैं जो ज़माने को बदल देते हैं
अकबर इला आबादी
नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गनबद पर
तो शाहीं है बसेरा कर पहाड़ों की चटानों में
अल्लामा इक़बाल
अभी से पांव के छाले ना देखो
अभी यारो सफ़र की इबतिदा है
एजाज़ रहमानी
साहिल के सिक्कों से किसे इनकार है लेकिन
तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है
आल-ए-अहमद
ये कह के दिल ने मेरे हौसले बढ़ाए हैं
ग़मों की धूप के आगे ख़ुशी के साये हैं
माहिर उल-क़ादरी
कामयाबी पर शायरी
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहीए
दुष्यंत कुमार
देख ज़िंदाँ से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार
रक़्स करना है तो फिर पांव की ज़ंजीर ना देख
मजरूह सुलतानपुरी
तीर खाने की हवस है तो जिगर पैदा कर
सरफ़रोशी की तमन्ना है तो सर पैदा कर
अमीर मीनाई
हार हो जाती है जब मान लिया जाता है
जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है
शकील आज़मी
लोग जिस हाल में मरने की दुआ करते हैं
मैंने इस हाल में जीने की क़सम खाई है
अमीर क़ज़लबाश
बढ़के तूफ़ान को आग़ोश में ले-ले अपनी
डूबने वाले तेरे हाथ से साहिल तो गया
अबद अलहमेद अदम
भंवर से लड़ो तुंद लहरों से उलझो
कहाँ तक चलोगे किनारे किनारे
रज़ा हमदानी
कामयाबी पर शायरी
जहां पहुंच के क़दम डगमगाए हैं सब के
इसी मुक़ाम से अब अपना रास्ता होगा
आबिद अदीब
शह-ज़ोर अपने ज़ोर में गिरता है मिस्ल-ए-बर्क़
वो तिफ़्ल किया गिरेगा जो घुटनों के बल चले
मिर्ज़ा अज़ीम बेग अज़ीम
जलाने वाले जलाते ही हैं चिराग़ आख़िर
ये क्या कहा कि हवा तेज़ है ज़माने की
जमील मज़हरी
यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी लेकर चिराग़ जलता है
मंज़ूर हाश्मी
सियाह-रात नहीं लेती नाम ढलने का
यही तो वक़्त है सूरज तेरे निकलने का
शहरयार
वक़्त की गर्दिशों का ग़म ना करो
हौसले मुश्किलों में पलते हैं
महफ़ूज़ अलरहमान आदिल
सदा एक ही रख नहीं नाव चलती
चलो तुम उधर को हवा हो जिधर की
अलताफ़ हुसैन हाली
कामयाबी पर शायरी
मैं आँधियों के पास तलाश-ए-सबा में हूँ
तुम मुझसे पूछते हो मेरा हौसला है क्या
अदा जाफ़री
उसे गुमाँ है कि मेरी उड़ान कुछ कम है
मुझे यक़ीं है कि ये आसमान कुछ कम है
नफ़स इंबा लोई
मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देखकर
उसने दीवारों को अपनी और ऊंचा कर दिया
आदिल मंसूरी
इतने मायूस तो हालात नहीं
लोग किस वास्ते घबराए हैं
जां निसार अख़तर
इन्ही ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चांद निकलेगा
अँधेरी रात के पर्दे में दिन की रोशनी भी है
अख़तर शीरानी
वाक़िफ़ कहाँ ज़माना हमारी उड़ान से
वो और थे जो हार गए आसमान से
फ़हीम जोगा पूरी
मुसीबत का पहाड़ आख़िर किसी दिन कट ही जाएगा
मुझे सर मार कर तेशे से मर जाना नहीं आता
यगाना चंगेज़ी
कामयाबी पर शायरी
मौजों की सियासत से मायूस ना हो फ़ानी
गिर्दाब की हर तह में साहिल नज़र आता है
फ़ानी बदायुनी
दामन झटक के वादिए ग़म से गुज़र गया
उठ उठ के देखती रही गर्द-ए-सफ़र मुझे
अली सरदार जाफ़री
गो आबले हैं पांव में फिर भी ऐ रहरवो
मंज़िल की जुस्तजू है तो जारी रहे सफ़र
नूर क़ुरैशी
हवा ख़फ़ा थी मगर इतनी संग-ए-दिल भी ना थी
हमीं को शम्मा जलाने का हौसला ना हुआ
क़ैसर अलजाफ़री
तुंद ई बाद-ए-मुख़ालिफ़ से ना घबरा ऐ उक़ाब
ये तो चलती है तुझे ऊंचा उड़ाने के लिए
सय्यद सादिक़ हुसैन
लज़्ज़त-ए-ग़म तो बख़श दी उसने
हौसले भी अदम दिए होते
अब्दुलहमीद अदम
जिन हौसलों से मेरा जुनूँ मुतमईन ना था
वो हौसले ज़माने के मेयार हो गए
अली जव्वाद ज़ैदी
बना लेता है मौज ख़ून-ए-दिल से इक चमन अपना
वो पाबंद-ए-क़फ़स जो फ़ितरतन आज़ाद होता है
असग़र गोंडवी