‘सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट’ से अब शायद ही कोई हिंदुस्तानी अनजान हो! देश को अब नई संसद मिलने वाली है। सरकार का मानना है कि अभी का संसद भवन अब सुरक्षित नहीं है। दरअसल, अंग्रेजों ने इस संसद भवन का निर्माण 1921 से शुरु किया गया और 1927 में तैयार हो गया। आज इसके बने लगभग 100 साल हो चुके हैं। अब इसे सांसदों के लिए सुरक्षित नही माना जा रहा है। ऐसे में नई संसद भवन की मांग जायज़ लगती है। लेकिन एक सवाल उठना लाजिमी है कि क्या जान की कीमत सिर्फ सांसदों,विधायकों और आला अधिकारियों की ही है ? आम लोगों की जान को कीमती क्यों नहीं माना जाता है?
जानलेवा दुर्घटना के बाद भी आम लोगों के जान की परवाह नहीं करती सरकार !
जरा सोचिए! क्यों कोई 100-150 साल पुरानी पुल या सड़क को बदलने की बात नहीं करता जब तक की वह पुल ख़ुद टूट कर हजारों लोगों की जान नहीं ले लेती! कल भी पटना के करीब फतुहा में पुनपुन नदी पर बना पुल ध्वस्त हो गया जिसे अंग्रेजों ने 1894 में बनाया था।अगर लॉकडाउन ना होता तो ना जाने कितने लोग इसमें अपनी जान गवांते और सरकार मुआवजे के नाम पर कुछ रुपयें देकर अपनी कमियों को छुपा लेती।आज भी पुरे देश में हजारों ऐसे पुल है जिन्हें अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था ,और अब वह ऐसी हालत में है कि कभी भी कुछ अनहोनी हो सकती है। लेकिन सरकार को तनिक भी परवाह नहीं।
1दिसम्बर 2006 की सुबह 8 बजे 150 साल पुरानी उल्टा पुल हावड़ा जमालपुर सुपरफास्ट एक्सप्रेस पर गिर गई जिसमें 50 से अधिक लोगों ने अपनी जान गवां दी और सैकड़ों घायल हो गए। उस पुल को 10 साल पहले से ही जर्ज़र घोषित कर दिया गया था लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और परिणाम हम सबने देखा। ऐसे ही ना जाने कितनी बार ऐसी ख़बरे सुनने को मिलती है और भविष्य में भी सुनने को मिलती रहेंगी क्योंकि यह पुल आम लोगों के लिए होता है। ख़ास लोगों के लिए सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत नई संसद भवन का निर्माण तो हो ही रहा है।
By मो. अलताफ अली
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