मज़हबी बेहस मैंने की ही नहीं
फ़ालतू अक़ल मुझमें थी ही नहीं
अकबर इला आबादी
ये इलम का सौदा ये रिसाले ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं
जां निसार अख़तर
इल्म में भी सुरूर है लेकिन
ये वो जन्नत है जिसमें हूर नहीं
अल्लामा इक़बाल
लफ़्ज़-ओ-मंज़र में मआनी को टटोला ना करो
होश वाले हो तो हर बात को समझा ना करो
महमूद अय्याज़
अक़ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहीं
इशक़ पर आमाल की बुनियाद रख
अल्लामा इक़बाल
इल्म पर शायरी
हद से बढ़े जो इल्म तो है जहल दोस्तो
सब कुछ जो जानते हैं वो कुछ जानते नहीं
ख़ुमारध बारह बंकवी
इल्म की इबतिदा है हंगामा
इल्म की इंतिहा है ख़ामोशी
फ़िर्दोस गयावी
अक़ल कहती है दुबारा आज़माना जहल है
दिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाईए
माहिर उल-क़ादरी
यही जाना कि कुछ ना जाना हाय
सो भी इक उम्र में हुआ मालूम
मीर तक़ी मीर
आदमियत और शै है, इल्म है कुछ और शै
कितना तोते को पढ़ाया पर वो हैवाँ ही रहा
शेख़ इबराहीम ज़ौक़ध
इल्म पर शायरी
थोड़ी सी अक़ल लाए थे हम भी मगर अदम
दुनिया के हादिसात ने दीवाना कर दिया
अबद अलहमेद अदम
अक़ल में जो घर गया ला-इंतिहा क्यूँ-कर हुआ
जो समा में आ गया फिर वो ख़ुदा क्यूँ-कर हुआ
अकबर इला आबादी
अदब तालीम का जौहर है, ज़ेवर है जवानी का
वही शागिर्द हैं जो ख़िदमते उस्ताद करते हैं
चकबस्त बुरज निरावन
इबतिदा ये थी कि मैं था और दावा इलम का
इंतिहा ये है कि इस दावे पे शरमाया बहुत
जगन नाथ आज़ाद
मेरे क़बीले में तालीम का रिवाज ना था
मेरे बुज़ुर्ग मगर तख़्तियाँ बनाते थे
लियाक़त जाफ़री
जुनूँ को होश कहाँ एहतिमाम ग़ारत का
फ़साद जो भी जहां में हुआ ख़िरद से हुआ
इक़बाल अज़ीम
वो खड़ा है एक बाब-ए-इलम की दहलीज़ पर
मैं ये कहता हूँ उसे इस ख़ौफ़ में दाख़िल ना हो
मुनीर नियाज़ी
जान का सर्फ़ा हो तो हो लेकिन
सर्फ़ करने से इलम बढ़ता है
अबद उल-अज़ीज़ ख़ालिद