वस्ल में भी रहती है भूलने की बीमारी
होंट चूम आता हूँ गाल भूल जाता हूँ
शायरी उस के लब पे सजती है
जिसकी आँखों में इशक़ होता है
۔
लफ़्ज़ टूटे लब-ए-इज़हार तक आते आते
मर गए हम तेरे मयार तक आते आते
۔
जे़रे लब ये जो तबस्सुम का दिया रखा है
है कोई बात जिसे तुमने छिपा रखा है
अमजद इस्लाम अमजद
۔
लब पर हैं क़हक़हे किसी नाकाम ज़बत के
दिल में भरा हुआ है क़ियामत का इक मलाल
۔
चूम लेते हैं कभी लब तो कभी रुख़्सार
तुमने ज़ुल्फ़ों को बहुत सर पे चढ़ा रखा है
۔
नींद से क़बल मेरी आँखों पर
लब तुम्हारे बहुत ज़रूरी हैं
नामालूम
क़तल कर दे बिला झिजक हमको
होंट अपने नहीं दबाया कर
होंठों पर शायरी
उसके होंटों पे रख के होंट अपने
बात ही तो तमाम कर रहे हैं
जून एलिया
۔
तूने देखी है वो पेशानी, वो रुख़्सार , वो लब
ज़िंदगी जिनके तसव्वुर में लुटा दी हमने
अहमद फ़राज़
۔
मेरे हमसुख़न का ये हुक्म था कि कलाम उससे मैं कम करूँ
मेरे होंट ऐसे सिले कि फिर मिरी चुप ने उसको रुला दिया
अली जरयूंन
۔
सिर्फ उस के होंट काग़ज़ पर बना लेता हूँ मैं
ख़ुद बना लेती है होंटों पर हंसी अपनी जगह
۔
आज तेरे लबों की नीयत से
ख़ूबसूरत गुलाब चूमा है
नदीम भाभा
सो देखकर तेरेरुख़्सार-ओ-लब यक़ीं आया
कि फूल खुलते हैं गुलज़ार से इलावा भी
अहमद फ़राज़
۔
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहीए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
मीर तक़ी मीर
۔
इतने शीरीं हैं उस के लब कि रक़ीब
गालियां खा के बदमज़ा ना हुआ
मिर्ज़ा ग़ालिब