माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत
है रोक-टोक इनकी हक़ में तुम्हारे नेअमत
अलताफ़ हुसैन हाली
जिनके किरदार से आती हो सदाक़त की महक
उनकी तदरीस से पत्थर भी पिघल सकते हैं
नामालूम
अदब तालीम का जौहर है ,ज़ेवर है जवानी का
वही शागिर्द हैं जो ख़िदमते उस्ताद करते हैं
चकबस्त बुरज निरावन
देखा ना कोहकन कोई फ़र्हाद के बग़ैर
आता नहीं है फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर
नामालूम
वही शागिर्द फिर हो जाते हैं उस्ताद ए जौहर
जो अपने जान-ओ-दिल से ख़िदमत उस्ताद करते हैं
लाला माधव राम जोहर
टीचर पर शायरी
शागिर्द हैं हम मीर से उस्ताद के रासिख़
उस्तादों का उस्ताद है, उस्ताद हमारा
रासिख़ अज़ीमाबादी
रहबर भी ये हमदम भी ये ग़मखार हमारे
उस्ताद ये क़ौमों के हैं मेमार हमारे
नामालूम
अब मुझे मानें ना मानें ए हफ़ीज़
मानते हैं सब मेरे उस्ताद को
हफ़ीज़ जालंधरी
उस्ताद के एहसान का कर शुक्र मुनीर आज
की अहल-ए-सुख़न ने तेरी तारीफ़, बड़ी बात
मुनीर शिकवा आबादी
किस तरह अमानत ना रहूं ग़म से मैं दिल-गीर
आँखों में फिरा करती है उस्ताद की सूरत
अमानत लखनवी
महरूम हूँ मैं ख़िदमत उस्ताद से मुनीर
कलकत्ता मुझको गोर से भी तंग हो गया
मुनीरध शिकवा आबादी