औरों की बुराई को ना देखूं वो नज़र दे
हाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे
ख़लील तनवीर
हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी
ख़ुदा करे कि जवानी तेरी रहे बेदाग़
अल्लामा इक़बाल
अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो
बशीर बदर
आख़िर दुआ करें भी तो किस मुददुआ के साथ
कैसे ज़मीं की बात कहीं आसमां से हम
अहमद नदीम क़ासिमी
मैं क्या करूँ मेरे क़ातिल ना चाहने पर भी
तेरे लिए मेरे दिल से दुआ निकलती है
अहमद फ़राज़
मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले
हंसी आ रही है तरी सादगी पर
गोपाल मित्तल
अभी ज़िंदा है माँ मेरी, मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
मुनव्वर राना
दुआ पर शायरी
दुआ को हाथ उठाते हुए लरज़ता हूँ
कभी दुआ नहीं मांगी थी माँ के होते हुए
इफ़्तिख़ार आरिफ़
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है
मुनव्वर राना
जाते हो ख़ुदा-हाफ़िज़ हाँ इतनी गुज़ारिश है
जब याद हम आ जाएं मिलने की दुआ करना
जलील मानक पूरी
दुआ करो कि मैं उसके लिए दुआ हो जाऊं
वो एक शख़्स जो दिल को दुआ सा लगता है
उबैदुल्लाह अलीम
मांग लूं तुझसे तुझी को कि सभी कुछ मिल जाये
सौ सवालों से यही एक सवाल अच्छा है
अमीर मीनाई
कोई चारा नहीं दुआ के सिवा
कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा
हफ़ीज़ जालंधरी
मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे
ना दवा याद रहे और ना दुआ याद रहे
शेख़ इबराहीम ज़ौक़
दुआ पर शायरी
दुआएं याद करा दी गई थीं बचपन में
सो ज़ख़म खाते रहे और दुआ दिए गए हम
इफ़्तिख़ार आरिफ़
क्यों मांग रहे हो किसी बारिश की दुआएं
तुम अपने शिकस्ता दर-ओ-दीवार तो देखो
जाज़िब क़ुरैशी
हज़ार बार जो मांगा करो तो क्या हासिल
दुआ वही है जो दिल से कभी निकलती है
दाग़ देहलवी
दूर रहती हैं सदा उनसे बलाएँ साहिल
अपने माँ बाप की जो रोज़ दुआ लेते हैं
मुहम्मद अली साहिल
मांगी थी एक-बार दुआ हमने मौत की
शर्मिंदा आज तक हैं मियां ज़िंदगी से हम
नामालूम
कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहजे में
अजब तरह की घुटन है हुआ के लहजे में
इफ़्तिख़ार आरिफ़