मायावती की बसपा उत्तर प्रदेश में दलितों की लोकप्रिय पार्टी मानी जाती है। दलितों पर अपनी गहरी पकड़ के साथ ब्राह्मण तथा कुछ ओबीसी वोटों के ध्रुवीकरण कर मायावती मुख्यमंत्री भी बन चुकी है। मायावती इसे सोशल इंजीनियरिंग कहा करती है। लेकिन क्या इस बार के विधानसभा चुनाव में मायावती के पास वाकई में कोई ऐसा प्लान है जो उन्हें दुबारा मुख्यमंत्री बना सके।
मायावती दावा कर रही है कि प्रदेश की जनता समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी से ऊब चुकी है, ऑफिसर बेलगाम हो चुके हैं। इसलिए लोग अब बसपा को ही पसंद कर रहे हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या सही में जनता सत्ता परिवर्तन के लिए तैयार है?
इस बार के विधानसभा चुनाव अभी तक मायावती प्रेस कॉन्फ्रेंस भले ही कर रही हैं लेकिन उनकी ओर से कोई गम्भीर चुनाव प्रचार की तैयारी नहीं दिख रही है। बसपा की ओर से किसी बड़े चुनावी आयोजन नहीं हुआ है। तो क्या मायावती चुनाव प्रचार से इसलिए नदारद हैं क्योंकि उनके पास कोई बड़ा सोशल इंजीनियरिंग प्लान है या फिर वो इस चुनाव में सक्रिय राजनीति कर ही नहीं रही है!
राजनीतिक गलियारों में भी इस बात कि चर्चा है कि लखनऊ के बसपा कार्यालय में सन्नाटा क्यो न् पसरा है? बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा इस बात का जवाब देते हुए कहते हैं कि हमारे कार्यकर्ता ज़मीनी स्तर पर पार्टी का चुनाव प्रचार कर रहे हैं। अब शोरशराबा में विश्वास नहीं रखते बल्कि जमीनी स्तर पर काम करते हैं।
सतीश चंद्र मिश्रा को दलित ब्राह्मण वोट पर है उम्मीद
बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा को दलित ब्राह्मण वोटों का आसरा दिख रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य की पिछली दो सरकारों, योगी सरकार और अखिलेश सरकार दोनों के कार्यकाल में ब्राह्मणों की उपेक्षा और उन पर अत्याचार हुए हैं। सरकारी टेंडर, नौकरी आदि में इस समाज का शोषण हुआ है। इसीलिए राज्य का सारा ब्राह्मण समाज इस बार एकजुट होकर बीएसपी का साथ देगा।
पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने योगी आदित्यनाथ पर आरोप लगाया है कि, “योगी सरकार में रोको और ठोको” की नीति के तहत सैकड़ों ब्राह्मणों की हत्या हो गई।
दलित ब्राह्मण वोट से 2007 में सरकार बना चुकी है बसपा
2007 के विधान सभा चुनाव में मायावती ने 206 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई थी। इस चुनाव में दलितों के साथ-साथ ब्राह्मणों का एकमुश्त वोट भी मिला था। तब से मायावती इस सोशल इंजीनियरिंग के भरोसे राजनीति करती है।
क्या मायावती 2007 जैसा प्रदर्शन दुहरा पाएंगी ?
विशेषज्ञों की राय में मायावती के लिए अब 2007 की सफलता को दुहरा पाना मुश्किल है। अब सामाजिक-राजनीतिक परिस्थिति अलग है। अब भीमसेना की लोकप्रियता दलितों में बढ़ रही है जो 2007 में नहीं थी। इसलिए दलितों को एकजुट करना अब बसपा के लिए कठिन है। इधर योगी के नेतृत्व में अतिवादी हिंदुत्व की राजनीति शुरू हो गयी है जिससे ब्राह्मणों का भाजपा से नजदीकी बढ़ चुकी है। 2007 में ब्राह्मण समाज को समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में किसी एक को चुनना था। उस वक्त भाजपा के जीतने की उम्मीद बहुत कम थी।
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