जाने कितने डूबने वाले साहिल पर भी डूब गए
प्यारे तूफ़ानों में रह कर इतना भी घबराना किया
ख़लीक़ सिद्दीक़ी
इस की आँखें हैं कि इक डूबने वाला इंसां
दूसरे डूबने वाले को पुकारे जैसे
इर्फ़ान सिद्दीक़ी
तमाशा देख रहे थे जो डूबने का मेरे
मेरी तलाश में निकले हैं कश्तियां लेकर
नामालूम
जहां तक डूबने का डर है तुमको
चलो हम साथ चलते हैं वहां तक
ऐन इर्फ़ान
साहिल के तमाशाई हर डूबने वाले पर
अफ़सोस तो करते हैं इमदाद नहीं करते
फ़ना निज़ामी कानपुरी
डूबने वाले को साहिल से सदाएँ मत दो
वो तो डूबेगा मगर डूबना मुश्किल होगा
असग़र मह्दी होश
बड़े सुकून से डूबे थे डूबने वाले
जो साहिलों पे खड़े थे बहुत पुकारे भी
अमजद इस्लाम अमजद
डूबने पर शायरी
नाख़ुदा डूबने वालों की तरफ़ मुड़ के ना देख
ना करेंगे ना, किनारों की तमन्ना की है
सालिक लखनवी
उफ़ुक़ पर डूबने वाला सितारा
कई इमकान रोशन कर गया है
ख़ावर एजाज़
ख़ुदा को ना तकलीफ़ दे डूबने में
किसी नाख़ुदा के सहारे चला चल
हफ़ीज़ जालंधरी
डूबने वाले मौज तूफ़ाँ से
जाने क्या बात करते जाते हैं
महेश चन्द्र नक़्श
पुकारता रहा किस-किस को डूबने वाला
ख़ुदा थे इतने, मगर कोई आड़े आ ना गया
यगाना चंगेज़ी
डूबने की ना तैरने की ख़बर
इशक़ दरिया में बस उतर देखूं
आसमा ताहिर
हमारे डूबने के बाद उभरेंगे नए तारे
जबीन-ए-दहर पर छटकेगी अफ़्शां हम नहीं होंगे
अबद अलमजीद सालिक
डूबने पर शायरी
जाने कितने डूबने वाले साहिल पर भी डूब गए
प्यारे तूफ़ानों में रह कर इतना भी घबराना क्या
ख़लीक़ सिद्दीक़ी
डूबने वाला था दिन शाम थी होने वाली
यूं लगा मेरी कोई चीज़ थी खोने वाली
जावेद शाहीन
लगता है उतना वक़्त मेरे डूबने में क्यों
अंदाज़ा मुझको ख़ाब की गहराई से हुआ
ज़फ़र इक़बाल
डुबो रहा है मुझे डूबने का ख़ौफ़ अब तक
भंवर के बीच हूँ दरिया के पार होते हुए
अफ़ज़ल ख़ान
तलातुम का एहसान क्यों हम उठाएं
हमें डूबने को किनारा बहुत है
साहिर भोपाली
ये जब है कि इक ख़ाब से रिश्ता है हमारा
दिन ढलते ही दिल डूबने लगता है हमारा
शहरयार
वो बस्ती ना-ख़ुदाओं की थी लेकिन
मिले कुछ डूबने वाले वहां भी