सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
हम अमन चाहते हैं मगर ज़ुलम के ख़िलाफ़
गर जंग लाज़िमी है तो फिर जंग ही सही
साहिर लुधियानवी
नक़्शा लेकर हाथ में बच्चा है हैरान
कैसे दीमक खा गई उस का हिन्दोस्तान
निदा फ़ाज़ली
दिल से निकलेगी ना मर कर भी वतन की उलफ़त
मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी
लाल चंद फ़लक
सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसिताँ हमारा
अल्लामा इक़बाल
लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है
उछल रहा है ज़माने में नाम – ए- आज़ादी
फ़िराक़-गोरखपुरी
इसी जगह उसी दिन तो हुआ था ये ऐलान
अंधेरे हार गए ज़िंदाबाद हिंदुस्तान
जावेद अख़तर
देशभक्ति शायरी
ये कह रही है इशारों में गर्दिश-ए-गर्दूं
के जल्द हम कोई सख़्त इन्क़िलाब देखेंगे
अहमक़ फफूंदवी
वतन की ख़ाक से मर कर भी हमको उन्स बाक़ी है
मज़ा दामन-ए-मादर का है इस मिट्टी के दामन में
चकबस्त बुरज नारायण
वतन की ख़ाक ज़रा एड़ियां रगड़ने दे
मुझे यक़ीन है पानी यहीं से निकलेगा
नामालूम
दिलों में हुब्ब-ए-वतन है अगर तो एक रहो
निखारना ये चमन है अगर तो एक रहो
जाफ़र मलीहाबादी
वतन के जांनिसार हैं वतन के काम आएँगे
हम इस ज़मीं को एक रोज़ आसमां बनाएंगे
जाफ़र मलीहाबादी
इस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता
जिस मुल्क की सरहद की निगहबान हैं आँखें
नामालूम
हम भी तिरे बेटे हैं ज़रा देख हमें भी
ए ख़ाक-ए-वतन तुझसे शिकायत नहीं करते
ख़ुरशीद अकबर
देशभक्ति शायरी
वतन की पासबानी जान-ओ-ईमां से भी अफ़ज़ल है
मैं अपने मुल्क की ख़ातिर कफ़न भी साथ रखता हूँ
नामालूम
दुख में सुख में हर हालत में भारत दिल का सहारा है
भारत प्यारा देश हमारा सब देशों से प्यारा है
अफ़्सर मेरठी
ना होगा रायगां ख़ून शहीदाने वतन हरगिज़
यही सुर्ख़ी बनेगी एक दिन उन्वाने आज़ादी
नाज़िश प्रताप गढ़ी
भारत के ऐ सपूतो हिम्मत दिखाए जाओ
दुनिया के दिल पे अपना सिक्का बिठाए जाओ
लाल चंद फ़लक
ना कौस से ग़रज़ है ना मतलब अज़ां से है
मुझको अगर है इशक़ तो हिंदुस्तां से है
ज़फ़र अली ख़ां
कहाँ हैं आज वो शम्मा वतन के परवाने
बने हैं आज हक़ीक़त उन्हीं के अफ़साने
सिराज लखनवी
है मुहब्बत इस वतन से अपनी मिट्टी से हमें
इसलिए अपना करेंगे जान-ओ-तन क़ुर्बान हम
नामालूम
देशभक्ति शायरी
ख़ुदा ए काश नाज़िश जीते-जी वो वक़्त भी लाए
कि जब हिन्दोस्तान कहलाएगा हिन्दोस्तान आज़ादी
नाज़िश प्रताप गढ़ी
ऐ अहले वतन शाम-ओ-सहर जागते रहना
अग़यार हैं आमाद-ए-शर जागते रहना
जाफ़र मलीहाबादी
बेज़ार हैं जो जज़बा से
वो लोग किसी से भी मुहब्बत नहीं करते
नामालूम
मैंने आँखों में जला रखा है आज़ादी का तेल
मत अंधेरों से डरा,
मैंने आँखों में जला रखा है आज़ादी का तेल
मत अंधेरों से डरा, रख के मैं जो हूँ सो हूँ
अनीस अंसारी
वो हिन्दी नौजवां यानी अलमबरदार आज़ादी
वतन की पासबाँ वो तेग़ जौहर-दार आज़ादी
मख़दूम मुहीउद्दीन
क्या करिश्मा है मरे जज़्ब-ए-आज़ादी का
थी जो दीवार कभी अब है वो दर की सूरत
अख़तर अकबरबादी
सर-ब-कफ़ हिंद के जाँ-बाज़ वतन लड़ते हैं
तेग़ नौ ले ,सफ़-ए- दुश्मन में घुसे पड़ते हैं
बर्क़ देहलवी