By जावेद इकबाल
बसवराज बोम्मई कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं जो कि वहां के पूर्व मुख्यमंत्री एसआर बोम्मई के पुत्र हैं और बीएस येदुरप्पा के नेतृत्व वाली सरकार में गृह,कानून, संसदीय एवं विधायी कार्य मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। बी एस येदुरप्पा ने अपना इस्तीफा कार्यकाल पूर्ण होने से पहले ही राजभवन में जाकर राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपा दिया है। गौरतलब बात यह है कि राज्य के वह पहले ऐसे मुख्यमंत्री नहीं है जिन्होंने अपने कार्यकाल से पूर्व ही पद से इस्तीफा दिया हो। कर्नाटक में अब तक के सभी 22 मुख्यमंत्रियों में से केवल 3 मुख्यमंत्री ही ऐसे हैं जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया है। इन 22 मुख्यमंत्रियों में से तो 9 मुख्यमंत्री ऐसे हैं जिनका कार्यकाल 1 साल तक भी नहीं टिक पाया।
जातिगत समीकरण के अपने मायने
कर्नाटक की राजनीति में जातिगत समीकरण के अपने मायने हैं। यहां लिंगायत एवं वोक्कालिंगा जातियॉ खासा प्रभाव रखती हैं। उनमें लिंगायत सबसे ज्यादा प्रभावी है। इसकी आबादी लगभग 17 प्रतिशत है जो राज्य के 80 से 100 विधानसभा सीटों के वोटों को प्रभावित करती है।
कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री बोम्मई इसी प्रभावशाली जाति लिंगायत समुदाय से आते हैं। गौरतलब बात यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा भी लिंगायत समुदाय से ही संबंध रखते हैं।
राज्य की जनता में व्यापक असंतोष
कर्नाटक की राजनीति के जानकारों का मानना है कि येदुरप्पा के खिलाफ पार्टी के अंदर और राज्य की जनता में व्यापक असंतोष है। ऐसे में इनके मुख्यमंत्री रहते चुनाव लड़ना चुनौतियों से भरा साबित हो सकता है। इसलिए पार्टी के आला कमान ने इनको पद से हटाने का निर्णय लिया।दरअसल भाजपा कर्नाटक में हिंदुत्व के सहारे चुनाव लड़ना चाहती है। इसलिए वह संघ के विश्वसनीय चेहरा बीएल संतोष को मुख्यमंत्री बनाने की पहल करने लगी।
बीजेपी को कर्नाटक में येदुरप्पा की ताकत का एहसास है
लेकिन जैसे ही बी एस येदुरप्पा के इस्तीफे की मांग कर्नाटक की गलियों में गूंजने लगी तो लिंगायत मठाधीशों ने सख्त लहजे में अपना संदेश हाईकमान को पहुंचा दिया कि कर्नाटक की राजनीति में RSS की न चलकर लिंगायत की चलेगी और वे एक तरफा बीएस येदुरप्पा के समर्थन में आ गए। लिंगायतों का असंतोष इस कदर बढ़ा कि बी एस येदुरप्पा को इस मामले में खुद हस्तक्षेप करना पड़ा। बीजेपी को कर्नाटक में येदुरप्पा की ताकत का एहसास है। वह लिंगायतों की नाराजगी को अनदेखी कर चुनाव नहीं लड़ सकती है। यही कारण है कि बीजेपी ने तुरंत बी एल संतोष के नाम को पीछे कर बसवराज बोम्मई के नाम को आगे कर दिया। हालांकि राज्य मंत्रिमंडल में बोम्मई के खिलाफ बहुत ज्यादा असंतोष है जो समय-समय पर उभरती रहती है। लेकिन पार्टी ने लिंगायतों की नाराजगी के बजाय इस नाराजगी नजरअंदाज करना उचित समझा। बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बना कर बीजेपी ने कहीं ना कहीं यह संदेश देने की कोशिश की है कि यदुरप्पा को हटाकर भी पार्टी उनकी ताकत का इस्तेमाल कर रही है।
एक तीर से दो शिकार किया है
बोम्मई के जरिए बीजेपी हाईकमान ने एक तीर से दो शिकार किया है। पहला यह है कि उन्होंने मुख्यमंत्री लिंगायत समुदाय से ही चुनकर लिंगायत मठाधीशों की सहानुभूति को बरकरार रखने का प्रयास किया है वही दूसरी तरफ उन्होंने पूर्व सीएम बीएस येदुरप्पा को भी नाराज नहीं किया है क्योंकि नए सीएम बोम्मई बीएस येदुरप्पा के दाहिने हाथ माने जाते हैं।
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