कहानियां मानव के क्षितिज का विस्तार करती हैं। कहानी ही मानव को मानव होने का अर्थ सीखाती है। क्योंकि कहानी ही वो खिड़की है जिससे झांककर दूसरों के जिंदगी को समझा जा सकता है। तब आप अपनी खासियत छोड़े बगैर ही औरों की जगह अपने आप को रखकर उसकी जिंदगी को समझ सकते हैं। आपको यह सामर्थ्य सिर्फ कहानी ही दे सकती है। अपनी तराजू पर पूरी दुनिया को तौलने की गन्दी नशा से मुक्त रह कर किसी को उसकी परिस्थितियों में आंकना ही मानवता है जो हमें जानवरों से अलग बनाती है। जीवन की इसी बारीकियों से हमे रु-ब-रु कराती है सहर काजी की कहानी “छोटी सी कहानी थी…”
“छोटी सी कहानी थी…” लेखिका के मानव मन की एक लंबी उड़ान है जो इंसान के क्षितिज के अंत को तलाशना चाहती है। बहु मंजिले घर की ऊँचाई का एकांत लेखिका के बाल-मन को आकाश में टिमटिमाते तारों की सैर के लिए बरबस प्रेरित करता रहता था। रोज रात को छत पर आना और टिमटिमाते तारों में खो जाना किसी कहानी की पटकथा लिखने के समान ही था क्योंकि हम सब बचपन में मां, दादी से चांद-तारों से जुड़ी अनेक कहानियां सुन चुके हैं जैसे चांद का मामू बनना, उषाकाल से कुछ घण्टे पहले सात टिमटिमाते तारों का सप्तर्षि होना, उत्तर दिशा में एक ध्रुव तारा होना।

लेखिका के बाल-मन में ही “छोटी सी कहानी थी…” के पटकथा का अंकुर फुट चुका था जो अब “हिंदी साहित्य सदन”के सौजन्य से किताब बन हम सबके सामने है।
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