कॅरोना वायरस पर शायरी
तलाश-ए-मुहब्बत में घर बैठे रोना
कॅरोना कॅरोना को बस भी करो ना
अरशद सईद
शहर के हालात को हल्का ना ले ।
देख मेरी बात को हल्का ना ले ।
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अब मुहाफ़िज़ हैं समाजी दूरियाँ
फ़ासलों की घात को हल्का ना ले
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मश्वरा सुन ले तबीब-ए-वक़्त का
तिब्बी तशरीहात को हल्का ना ले
ख़ाक कर देगी वबाई ज़िंदगी
मौत के ख़दशात को हल्का ना ले
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छोड़ कुछ दिन शाम की आवारगी
अपने मामूलात को हल्का ना ले
कॅरोना वायरस पर शायरी
एहतियातन दोस्तों से भी ना मल
दोस्तों की ज़ात को हल्का ना ले
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उनमें सच्चे भी तो हो सकते हैं कुछ
सारे ऐलानात को हल्का ना ले
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इंद्र अंदर घुल के रह जाऐंगे हम
हिजर के दिन रात को हल्का ना ले
देखना हलकान कर देंगे हमें
इशक़ के सदमात को हल्का ना ले
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ख़ैर ख़्वाही के इलावा भी है कुछ
तू मरे जज़बात को हल्का ना ले
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रख अज़ीज़म हुस्न पर गहरी नज़र
इशक़ के शुबहात को हल्का ना ले
शायर जुनैद आज़र
ज़ीशान अलवी की ग़ज़ल
आग,पानी, हवा ही काफ़ी है
ख़ाक को इक वबा ही काफ़ी है
तुमको छू कर मरे रक़ीब मिरा
मुझको बस सामना ही काफ़ी है
दुश्मन-ए-जां के हाथ कौन पड़े
अब तो बस छींकना ही काफ़ी है
फ़ोन पर बात कर लूँ आशिक़ से
आजकल ये अता ही काफ़ी है
आजकल नैट पे हो रहा है विसाल
अब ये रस्म-ए-वफ़ा ही काफ़ी है
सेनेटाइज़र मिलेगी हर दुल्हन
अब ये रस्म-ए-हिना ही काफ़ी है