दिल को तेरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझसे बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
अहमद फ़राज़
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जिन पे होता है बहुत दिल को भरोसा ताबिश
वक़्त पड़ने पे वही लोग दग़ा देते हैं
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मुसाफ़िरों से मुहब्बत की बात कर लेकिन
मुसाफ़िरों की मुहब्बत पे एतबार ना कर
उम्र अंसारी
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कोई रफ़ूगरी करेगा मेरी
भरोसा खा गया जगह जगह से मुझे
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फिर उन की गली से गुज़रेगा, फिर सहव का सजदा कर लेगा
इस दिल पे भरोसा कौन करे हर-रोज़ मुसलमाँ होता है
इब्न इंशा
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिसको भी देखना हो कई बार देखना
निदा फ़ाज़ली
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आए तो यूं कि जैसे हमेशा थे मेहरबाँ
भूले तो यूं कि गोया कभी आशना ना थे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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भरोसा शायरी
यकीन-ए-इशक़ तो देखो कि उसके वादों पर
फ़रेब खाए मगर फिर भी एतबार किया
ज़ीशान साजिद
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इक उम्र हम किसी पे भरोसा किए रहे
फिर उम्र-भर किसी पे भरोसा नहीं किया
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जिन पे होता है बहुत दिल को भरोसा ताबिश
वक़्त पड़ने पे वही लोग दग़ा देते हैं
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भरोसा एक शख़्स ने तोड़ा
और हर इक से एतबार उठा
तेरे वादों पे भरोसा नहीं करने देती
तेरे पहलू में किसी और ख़ुशबू मुझको
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कोई अंधा किसी का हाथ थामे जैसे चलता है
मुहब्बत में भरोसा यूं किया था आप पर हमने
ज़ीशान साजिद
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जिस पे क्या ख़ुद से भी ज़्यादा भरोसा
उसने इक पल भी वफ़ा का नहीं सोचा
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भरोसा शायरी
भरोसा करना नहीं इस जहां के लोगों पर
मुझे तबाह किया है मेरे अज़ीज़ों ने
नदीम भाभा
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निग़ाहों को अभी तक दूसरा चेहरा नहीं भाया
भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारा लौट आने का
टूट सा गया है मेरे एतबार का वजूद
अब कोई मुख़लिस भी हो तो यक़ीन नहीं आता
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थी ना जिस दिल में कुछ जगह मेरी
मैं इसी दिल में क्यों उतारा गया
नामालूम
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दो-चार नहीं मुझको फ़क़त एक दिखा दो
वो शख़्स जो अंदर से भी बाहर की तरह हो
अतीक़ रहमान
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आदतन तुमने कर दिए वादे
आदतन हमने एतबार किया
गुलज़ार
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ना कोई वाअदा ना कोई यक़ीं ना कोई उम्मीद
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
फ़िराक़-गोरखपुरी
तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना
कि ख़ुशी से मर ना जाते अगर एतबार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब