कई सालों तक इंतजार करने के बाद Bhagwant Mann को पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP ) का मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार बनाया गया है। अब ऐसा लगता है कि पार्टी पंजाब में टिक कर चुनाव लड़ने जा रही है। पार्टी अरविंद केजरीवाल ब्रांड के बल पर चुनाव लड़ रही है। लेकिन पार्टी को एक सच्चे जाट सिख के चेहरे की ज़रूरत थी।
पिछली बार पार्टी ने किसी भावी सीएम के चेहरे के बग़ैर चुनाव लड़ा था। इसका उसे नुकसान भी हुआ था। वे दिन भी थे जब मान को शराब के नशे की हालत में वीडियो पूरे सोशल मीडिया पर थेऔर पार्टी का दिल्ली नेतृत्व उन्हें प्रोजेक्ट करने के लिए उत्सुक नहीं था। उनमें से कुछ वीडियो अभी भी विपक्ष द्वारा उन्हें नीचे गिराने के लिए दिखाए जाएंगे, लेकिन अब भगवंत मान की एक शांत और अच्छी छवि है।
उन्होंने 2019 में शराब छोड़ दी थी।
Bhagwant Mann के भाषण पंजाबी मिट्टी की सुगन्ध लिए हुए हास्य से भरपूर होते हैं जो भीड़ को आकर्षित करता है। वे पंजाब के पुनर्निर्माण, इसके युवाओं के विदेशी भूमि में पलायन को रोकने और स्वास्थ्य और शिक्षा के बुनियादी ढांचे में सुधार की बात कर रहे हैं। ऐसे मुद्दे जो इस बार पंजाब में ‘बदलाव’ के पक्ष में खड़े पंजाबियों से मजबूती के साथ जुड़े हैं। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि मान उन चंद लोगों में शामिल हैं, जो 2017 में चुनावी हार के बाद पंजाब में AAP के वरिष्ठ नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद भी केजरीवाल के प्रति वफादार रहे।
मान को शीर्ष स्थान देने के बाद AAP जाट सिखों के बीच अपना वोट बैंक बनाने की उम्मीद कर रही है। AAP को 2017 में सिख समुदाय से लगभग 30% वोट मिले, जो शिरोमणि अकाली दल (SAD) के 37% के बाद दूसरे स्थान पर था। उधर चरणजीत सिंह चन्नी जो एक दलित समुदाय से हैं उनको को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाने के कांग्रेस के फैसले ने जाट सिखों को पार्टी से अलग कर दिया है। जाट सीएम की सीट को अपना विशेषाधिकार मानते हैं। AAP को उम्मीद है कि कांग्रेस के जाट वोट अब उसकी झोली में आ गिरेंगे ।
पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा कौन होगा, इस खेल में कांग्रेस में मुकाबला कहीं अधिक कठिन है। इस बार उसके दो प्रतिद्वंद्वी चरणजीत सिंह चन्नी (charanjit singh channi)और नवजोत सिंह सिद्धू (navjot singh sidhu) हैं। कांग्रेस के इस एलान ने के भावी मुख्यमंत्री दलित हो सकता है ने बड़ी संख्या में दलित मतदाताओं को कांग्रेस के प्रति आकर्षित किया है। पार्टी ने संकेत दिया कि अगर संकट की हालत में वह चन्नी को पसंद करेगी, चन्नी को आदर्श उम्मीदवार के रूप में दिखाते हुए अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से एक वीडियो ट्वीट किया। दलित मतदाताओं से अपनी अपील के अलावा, चन्नी पिछले तीन महीनों में एक संतुलित और परिपक्व नेता के रूप में उभरे हैं, जो सिद्धू के व्यापारिक तरीकों के विपरीत है।
सिद्धू और चन्नी के बीच लड़ाई इतनी कड़वी है कि सिद्धू सार्वजनिक रूप से चन्नी को नीचा दिखा रहे हैं, जो पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए बहुत निराशाजनक है। दूसरी ओर चन्नी ने खुले तौर पर कहा है कि यदि सिद्धू को जल्द ही पार्टी से नहीं हटाया गया तो पार्टी चुनाव हार सकती है। 2016 में कांग्रेस में शामिल होने के लिए भाजपा छोड़कर जाने वाले सिद्धू का मुख्यमंत्री उमीदवार के रूप में अमरिंदर सिंह के कार्यकाल के दौरान पार्टी में कठिन समय रहा है। उन्हें कैबिनेट से निकाल दिया गया और दो साल के लिए घर पर ही रहना पड़ा। यह एक ऐसा समय था जब कयास लगाए जा रहे थे कि वह आप में शामिल हो सकते हैं और इसके सीएम चेहरा हो सकते हैं, लेकिन पार्टी उन्हें समायोजित नहीं कर सकी। सिद्धू को अपना बदला तब मिला जब अमरिंदर सिंह को कांग्रेस ने उन्हें पिछले सितंबर में मुख्यमंत्री पद से हटा दिया, लेकिन सिद्धू को फिर भी सीएम नहीं बनाया गया और चन्नी को काम सौंप दिया गया।
अब यह सवाल है कि क्या सिद्धू फिर से उधम मचा सकते हैं यदि उनके नाम की घोषणा जल्द नहीं की गई। वह जानते हैं कीचन्नी ने उन्हें रेटिंग के खेल में बहुत पीछे छोड़ दिया है। इस महीने की शुरुआत में जारी सी-वोटर रेटिंग के अनुसार, पहले से ही 29% लोग चन्नी को मुख्यमंत्री के रूप में चाहते हैं, जबकि सिद्धू के चाहने वाले सिर्फ 6% है। अब सिद्धू के पास सीमित विकल्प है । कियोंकि AAP के पास मान सीएम चेहरा है और शिरोमणि अकाली दल-बसपा गठबंधन सुखबीर सिंह बादल से आगे नहीं देखेगा।
सिद्धू को अच्छी तरह से जानने वाले कहते हैं कि वह खुद को एकमात्र ऐसे सुधारवादी के रूप में देखते हैं जो पंजाब से भ्रष्टाचार और कुशासन को जड़ से खत्म कर सकता है। बाकी सब उनकी नजर में दागदार हैं। यही कारण है कि उन्हें पंजाब में अपनी ही पार्टी के नेताओं से ज्यादा समर्थन नहीं मिलता है। जिनमें से ज्यादातर ट्विटर पर उन पर तेज मिसाइल दाग रहे हैं। अब जब AAP ने भी मोर्चा संभाल लिया है और मान को अपना चेहरा बनाया है, तो कांग्रेस पर अपने सीएम उम्मीदवार की घोसना करने का दबाव बढ़ गया है।
पंजाब लोक कांग्रेस और अलग हो चुके संयुक्त अकाली दल के साथ गठबंधन करने वाली भाजपा(BJP) अभी भी इस पर स्पष्ट नहीं हुई है कि वह अमरिंदर सिंह को अपने सीएम उम्मीदवार के रूप में पेश करेगी या नहीं। हो सकता है कि वह ऐसा बिल्कुल भी न करे, क्योंकि पार्टी करीब 70 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। बीजेपी एक दलित सिख को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करने पर भी विचार कर रही है।
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