इश्क़-ए-रवां की नहर है और हम हैं दोस्तो
उस बेवफ़ा का शहर है और हम हैं दोस्तो
मुनीर नियाज़ी
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भूलना था तो ये इक़रार किया ही क्यों था
बेवफ़ा तू ने मुझे प्यार किया ही क्यों था
नामालूम
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कौन उठाएगा तुम्हारी ये ख़फ़ा मेरे बाद
याद की ही बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद
अमीर मीनाई
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मेरी वफ़ा फ़रेब थी, मेरी वफ़ा पे ख़ाक डाल
तुझ सा कोई तो बावफ़ा तुझको मिले ख़ुदा करे
ज़ीशान साजिद
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किस ने वफ़ा के नाम पे धोका दिया मुझे
किस से कहूं कि मेरा गुनाहगार कौन है
अली ज़रयूंन
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दिल भी गुस्ताख हो चला था बहुत
शुक्र है आप बेवफ़ा निकले
इस से पहले कि बेवफ़ा हो जाएं
क्यों ना ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएं
अहमद फ़राज़
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बेवफ़ाई पर शायरी
वफ़ा तुझसे ऐ बेवफ़ा चाहता हूँ
मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
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हमको उन से वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा किया है
मिर्ज़ा ग़ालिब
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किसी बेवफ़ा की ख़ातिर ये जुनूँ फ़राज़ कब तक
जो तुम्हें भुला चुका है उसे तुम भी भूल जाओ
अहमद फ़राज़
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ये अदाए बेनियाज़ी तुझे बेवफ़ा मुबारक
मगर ऐसी बेरुख़ी किया, कि सलाम तक ना पहुंचे
शकील बद ऐवानी
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वो बेवफ़ा है तो क्या , मत कहो बुरा उस को
कि जो हुआ सो हुआ, ख़ुश रखे ख़ुदा उस को
नसीर तुराबी
ना कोई अह्द निभाए ना हम-नवाई करे
उसे कहो कि तसल्ली से बेवफ़ाई करे
जून एलिया
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भूलना था तो ये इक़रार किया ही क्यों था
बेवफ़ा तू ने मुझे प्यार किया ही क्यों था
नामालूम
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बेवफ़ाई पर शायरी
कल पे रखियो वफ़ा की बातें
मैं आज बहुत बुझा हुआ हूँ
जून एलिया
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मैं बददुआ तो नहीं दे रही हूँ उस को मगर
दुआ यही है उसे मुझसा अब कोई ना मिले
नोशी गिलानी
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ज़िंदगी तुझसे में उम्मीद-ए-वफ़ा क्या रखूँ
जब मुझे छोड़ गए यार पुराने मेरे
अहमद फ़राज़
अपने अपने बेवफ़ाओं ने हमें ,यकजा किया
वर्ना मैं तेरा नहीं था, और तू मेरा ना था
जमील अलील
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रिवायतों को निभाने का था सलीक़ा उसे
वो बेवफ़ाई भी करता रहा वफ़ा के साथ
नामालूम
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आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा कि हम में बेवफ़ा कोई नहीं
नामालूम
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तर्ज़-ए-वफ़ा को उस की क्या नाम दूं मैं अब के
ख़ुद दूर हो गया है, मुझको क़रीब कर के
नामालूम
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किसी बेवफ़ा की ख़ातिर ये जुनूँ फ़राज़ कब तक
जो तुम्हें भला चुका है उसे तुम भी भूल जाओ
अहमद फ़राज़
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बज़्म-ए-वफ़ा में अपनी ग़रीबी ना पूछिए
इक दर्द-ए-दिल है वो भी किसी का दिया हुआ
नदीम मलिक