सज़ा बग़ैर अदालत से मैं नहीं आया
कि बाज़ जुर्म सदाक़त से मैं नहीं आया
सहर अंसारी
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अदालत से यहां रोता हुआ हर मुद्दई निकला
करम फ़रमाई से मुंसिफ़ की हर मुजरिम बरी निकला
रियाज़ अनवर
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क़ुदरत की अदालत में कांटों की शिकायत है
हर बाग़ में फूलों की फितरत में रऊनत है
अरमान जोधपुरी
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मुहब्बत की अदालत भी भला कैसी अदालत है
कि जब भी उठने लगते हैं पुकारा होने लगता है
अहमद अता अल्लाह
लिखें उलफ़त की दस्तावेज़ बाहम
अदालत में करें इक़रार हम तुम
मलिका ज़मानी बेगम
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लोग अब फ़ैसला बताते हैं
और अदालत भी मान जाती है
डाक्टर आज़म
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बात अदालत तक आ गई यानी
और इक ख़ानदान टूट गया
काली चरण सिंह
अदालत पर शायरी
वक़्त मुंसिफ़ है फ़ैसला देगा
अब ज़रूरत भी क्या अदालत की
संजू शब्दता
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हमारा ही काग़ज़ हमारी अदालत
हमारी ही सोहबत हमें मार देगी
अदनान हामिद
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है मुंसिफ़ ही गिरफ़्तार तास्सुब
अदालत में हमारी हार तै है
डाक्टर आज़म
क़बल इन्साफ़ चल बसा मुल्ज़िम
अब अदालत से किया रवा रखीए
अहमद हिमेश
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क्यों अदालत को शवाहिद चाहिऐं
क्या ये ज़ख़मों की गवाही कुछ नहीं
ताहिर अज़ीम
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अदालत फ़र्श मक़तल धो रही है
उसूलों की शहादत हो गई क्या
फ़हमी बद एवनी
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सच अदालत में क्यों नहीं बोले
कांटे उग आए थे ज़बान में क्या
तुफ़ैल चतुर्वेदी
अदालत पर शायरी
तुमने सच्च बोलने की जुर्रत की
ये भी तौहीन है अदालत की
सलीम कौसर
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फ़ैसले सारे उनके हक़ में हैं
फिर भी मेरा यक़ीं अदालत में
सलमान आरिफ़ बरेलवी
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बेबसों की इस अदालत में मुराद
और कुछ अश्कों की सुनवाई हुई
सय्यद सद्दाम गिलानी मुराद
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अपने बच्चों की रोज़ी कमाता रहा
वो अदालत में अपना बयाँ बेच कर
ख़्वाजा अली हुसैन
बनेंगे इशक़ अदालत में हम वकील तेरे
पुरानी बात में नुक्ता नया निकालेंगे
नासिरा ज़ुबैरी
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मैं लुट गया हूँ मुज़फ़्फ़र हयात के हाथों
सुनेगी किस की अदालत मुक़द्दमा मेरा
मुज़फ़्फ़र वारसी
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कौन मस्लूब हुआ किस पे लगा है इल्ज़ाम
कश्मकश ऐसी है इन्साफ़ अदालत मांगे
इसहाक़ अतहर सिद्दीक़ी
अदालत पर शायरी
ये फ़ैसला तो बहुत ग़ैर मुंसिफ़ाना लगा
हमारा सच्च भी अदालत को बाग़ियाना लगा
मुज़फ़्फ़र वारसी
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फ़ैसला टलता रहा सुनवाई की ताख़ीर से
ख़ुद अदालत ने गवाहों को मुकर जाने दिया
रमान नजमी
वही क़ातिल वही मुंसिफ़ वही ऐनी शाहिद
अदल और आपकी मीज़ान अदालत मालूम
जाफ़र रज़ा
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पहले अहबाब तग़ाफ़ुल की सफ़ाई देंगे
फिर मरे हक़ में अदालत में गवाही देंगे
बी ऐस जैन जोहर
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इन्साफ़ ग़रीबों को जो मुंसिफ़ ना दिलाए
हो ऐसी जहां पर वो अदालत नहीं अच्छी
यासीन बरारी
तमाम शोरिशें सफ़्फ़ाकियाँ उरूज पे थीं
बिलआख़िर उनको अदालत से छूट जाना था
हैदर अली जाफ़री
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फिर क्यों सुना दिया था अदालत ने फ़ैसला
शाहिद मेरी गवाही अगर मोतबर ना थी
हफ़ीज़ शाहिद
अदालत पर शायरी
क्या फ़ैसला दिया है अदालत ने छोड़िए
मुजरिम तो अपने जुर्म का इक़बाल कर गया
अफ़ज़ल मिन्हास
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मज़लूम को दिलाए जो हर ज़ुलम से नजात
ऐसी जहां में कोई अदालत नहीं रही
फ़रोग़ ज़ैदी
अब उस के सामने इन्साफ़ का तराज़ू है
उन्हें कहें कि अदालत का एहतिराम करें
रुख़्सार आबाद य
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एक वक़्त आता है मुंसफ़ी नहीं मिलती
झूट की वकालत क्या ख़ौफ़ की अदालत किया
साक़ी फ़ारूक़ी
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हमें भी पास अदालत है अव्वलीं लेकिन
ये रुख़ बदलती हुई मुंसफ़ी गवारा नहीं
राशिद तराज़
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कितनी हस्सास अदालत है मेरे मुल्क तेरी
जो कि मज़लूम से आहों की सफ़ाई मांगे
अहसन गुलफ़ाम
दुनिया से है निराली अदालत हसीनों की
फ़र्याद जिसने की वो गुनहगार ही रहा
आग़ा हजो शरफ़
अदालत पर शायरी
मरे लहू की अदालत सजेगी आँखों में
गवाहियों को मैं अश्कों के पास रख दूँगा
नाशिर नक़वी
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क्या करें हम तिरे अशआर पे तन्क़ीद नदीम
कब कोई नुकता-ए-तौहीन-ए-अदालत निकले
मंज़ूर नदीम
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महफ़ूज़ कर लिया है अदालत ने फ़ैसला
क़ानून वक़्फ़ उज़्र ज़माना ना था कभी
मंज़र शहाब
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फ़ैसला लिखा हुआ रखा है पहले से ख़िलाफ़
आप क्या साहिब अदालत में सफ़ाई देंगे
वसीम बरेलवी
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वो क़ातिलों को छुड़ा लाएगा अदालत से
है उसकी बात मुदल्लिल बयान ऊंचा है
अब्बास दाना