उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाकों में लगभग 17 फ़ीसदी जाट रहते हैं जो 40-50 सीटों को प्रभावित कर सकते है। उत्तर प्रदेश का देश की चुनावी राजनीति में बहुत प्रभाव पड़ता है। खासकर तब जब वहां भाजपा की ही सरकार है। उत्तर प्रदेश में भाजपा प्रचंड बहुमत में भी है और केंद्र वाली भाजपा सरकार की तरह ही राज्य की भाजपा सरकार हिंदुत्ववादी विचारधारा का प्रतीक भी है।
किसान आंदोलन की वजह से भाजपा अब परेशान दिखाई दे रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के ‘जाटलैंड’ कहे जाने वाले क्षेत्र में किसान आंदोलन के प्रति बढ़ते व्यापक समर्थन से भाजपा बेहद चिंचित है। खबर है कि मंगलवार को पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ‘जाटलैंड’ के सभी नेताओं को किसानों से मिलकर कृषि कानून पर चर्चा करने को कहा है ताकि सरकार से नाराज किसानों से संवाद की पहल शुरू हो सके।
दरअसल,इस साल पश्चिम बंगाल, असम सहित पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं तथा 2022 में पंजाब और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा इन चुनावों पर किसान आंदोलन के संभावित प्रभावों से चिंचित है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में इस आंदोलन के व्यापक प्रभाव पड़ सकते हैं।
इनमें सभी अधिक चिंता का कारण उत्तर प्रदेश का चुनाव है। इस राज्य के 403 विधानसभा सीटों में से 90 सीटें जाट बेल्ट में आती हैं। इससे 19 जिलें प्रभावित हो सकती है। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाकों में लगभग 17 फ़ीसदी जाट रहते हैं जो 40-50 सीटों को प्रभावित कर सकते है। उत्तर प्रदेश का देश की चुनावी राजनीति में बहुत प्रभाव पड़ता है। खासकर तब जब वहां भाजपा की ही सरकार है। उत्तर प्रदेश में भाजपा प्रचंड बहुमत में भी है और केंद्र वाली भाजपा सरकार की तरह ही राज्य की भाजपा सरकार हिंदुत्ववादी विचारधारा का प्रतीक भी है। यहां अगर चुनाव में पार्टी की हार होती है तो इसका सीधा असर मोदी सरकार पर भी पड़ेगा। यही कारण है कि किसान आंदोलन अब भाजपा के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही है।
हरियाणा के 90 विधानसभा सीटों में से 43 सीटों पर जाट वोट का स्पष्ट प्रभाव हैं। यहां जाट वोटरों की संख्या लगभग 60 प्रतिशत है जो कि 8 ज़िलों में हैं। हरियाणा में किसान आंदोलन को व्यापक समर्थन मिल रहा है। वही राजस्थान में जाटों की आबादी 9 प्रतिशत हैं जो 40 सीटों को प्रभावित करने सकते हैं। बिना जाट वोट के समर्थन के सत्ता में आना यहां किसी भी पार्टी के लिए मुश्किल माना जाता है।
पंजाब के स्थानीय निकाय चुनावों में कांग्रेस को मिली बढ़त से तो बीजेपी परेशान है ही, उसकी परेशानी का मुख्य वजह अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में अकाली दल का साथ नहीं मिलना है।
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