ये किस मुक़ाम पे पहुंचा है कारवान वफ़ा
है एक ज़हर सा फैला हुआ फ़िज़ाओं में
अय्यूब साबिर
चला जाता है कारवान-ए-नफ़स
ना बाँग-ए-दिरा है ना सौत-ए-जरस
वहशतध रज़ा अली कलकत्वी
अजल ने लूट लिया आके कारवान हयात
सुना रहा हूँ ज़माना को दास्तान-ए-हयात
अफ़्क़र मोहानी
ये किस मुक़ाम पे ठहरा है कारवान वफ़ा
ना रोशनी की किरण है कहीं ना ताज़ा हवा
रज़ा हमदानी
मैं कहाँ कारवान शौक़ कहाँ
अब वो तब सा जहान-ए-शौक़ कहाँ
सुहेल
वो कारवान बहाराँ कि बे दर्रा होगा
सुकूत ग़ुन्चा की मंज़िल पे रुक गया होगा
आरिफ़ अबदालमतीन
है सफ़र में कारवान बहर-ओ-बर किसके लिए
हो रहा है एहतिमाम ख़ुशक-ओ-तर किसके लिए
मुहम्मद ख़ालिद
आए हैं पारा हाय जिगर दरमयान अशक
लाया है लाल बेश-बहा कारवान-ए-अश्क
मिर्ज़ा ग़ालिब
जरस है कारवान अहल आलम में फ़ुग़ां मेरी
जगा देती है दुनिया को सदा-ए-अल-अमाँ मेरी
सीमाब अकबराबादी
कारवां पर शायरी
क्या कारवान-ए-हस्ती गुज़रा रवा-रवी में
फ़र्दा को मैंने देखा गर्द-ओ-ग़ुबारदी में
नज़म तबा तबाई
रुक जा ए कारवान-ए-इमरोज़
माज़ी मेरा कुचल गया है
शमीम कर हानि
चलता जाता है कारवान हयात
इबतिदा किया है इंतिहा किया है
निदा फ़ाज़ली
ख़ून आँखों से निकलता ही रहा
कारवान-ए-अश्क चलता ही रहा
अशर्फ़ अली फ़ुग़ां
जाग कर रात हमने गुज़ारी
पूछ लो कारवान-ए-सहर से
फ़रीद जावेद
तूने मुझसे कोई सवाल किया
कारवान हयात-ए-रफ़्ता किया
बशीर बदर
कारवान हयात में ख़ुद को
हर क़दम अजनबी सा पाते हैं
मतीन नियाज़ी
मौसम ज़र निगाह आवारा
कारवान-ए-बहार आवारा
इशरत रूमानी